Tuesday, June 02, 2009

घात !

अश्क के बहाव थाम, होंठ पर उसी का नाम

चेतना की ओट में, स्पर्श भूल गए राम

कई बहाव आ गए, कई मंज़िलें जलीं

कोई कुछ न कर सका, हार हाथ फिर लगी

कोटि कोटि तालियों के बीच अकेले निदान

भीड़ में हो ढूंढते परिचित पलकों का झुकाव

आज वही नीर है, शब्दों की जागीर है

तरकश से निकलते हैं वही पुराने से बाण

आओ हाथ थाम लें, कटु यादों को त्याग दें

नव गगन की लालिमा में कुछ नया अलाप दें

अर्ध विराम लगा लगा के, तुम बहुत हो थक गए

नई लीक रखने के वादे कहाँ गए

आओ जमुनी तले कुछ पलों की याद में

भाव विभोर हो जीवन की फरियाद में

सुमन अर्पित करें इन चंद लम्हात को

आओ पुनः जी लें उस छोटे से घात को

4 comments:

Anon said...

Krodhith thi main, kisi karanvash
Padhi kavita maine, dhul gayi meri shikayat,
Sundar hain shabd aapke, rachna hain sarvopari
Man prasann mera, padh kar aapki shabdon ki ladi

roshnai said...

am reminded of faiz ahmed faiz:

tum aaye ho na shabe intezar guzri hai
talash mein hai seher bar bar guzri hai.

'vaade' galat hai....'vayde' sahi hai....'aa' ki matra ke baad 'ya' aayega. sorry i cannot type in hindi.

Anonymous said...

yeh padne ke baad to viswaas ho gaya hai ki aap ne IIM mein bhi top kiya hoga :)waise lines r inherently good

roshnai said...

its difficult to understand this piece. what do you mean by 'ghat'? please enlighten......