Saturday, June 27, 2009

I don't know - call it Blogspot's gift !

लबों को सी के, आंखों को झुकाए हुए

इस दश्त में चल रहे हैं ख़ुद से पराये हुए

कभी खुदा कभी अपनों की कभी ख़ुद की याद आती है

यह कैसी दौड़ है कि हम ख़ुद से है शरमाये हुए

ज़ुबां संभाल ओ काफ़िर कि यह रास्ते ठीक नही

खुदा के नाम पर इंसान मिटाए जाते हैं

तेरी आवारगी के आलम कुछ यूँ हैं

मील के पथ्थरों पर तेरे नाम पाए जाते हैं,

मुनासिब हो अगर मेरा खप जाना, दुआ कर कि यह आखिरी हरक़त हो

इस हश्र पर मुमकिन है कि कुछ कसीदे आ जाए, कुछ शरमाते, कुछ सकुचाये हुए

बुलंद रहे यह मौसिकी और इसके खयालों की ताज़गी, कलम को इंतज़ार रहेगा

शहीद हो चुके हैं कितने ख़यालात, कुछ निब के नीचे दबते, kuch .....hell ! Typing in hindi sucks big time, this has to be one of the most user un-friendly applications ever, they could have asked us to get a hindi keyboard and practice shusha or mangal fonts for that matter !

But I shall try again...another day another time, when patience stands by me and flow of thoughts is not hampered by gtalk going tak tak tak or blogger simply refusing to co-operate :-(

Thursday, June 04, 2009

आओ हिसाब करें

ज़रा हिसाब देते जाइये, ज़िन्दगी का बही खाता है

ज़रा शर्म दिखाइए , ऊपर भी एक विधाता है

किसी ने खूब कहा उम्र मरहम देती है

चोट कुरेदते जाइये गर इसी में मज़ा आता है

फतह की आग में झुलस गए होंगे

हमारी आंखों के खारे पानी को मौका दीजिये

सुकून में न सही, मुगालतों की मैय्यत ही सही

यह बन्दा कभी न कभी तो काम आता है

चोट कुरेदते जाइये गर इसी में मज़ा आता है



मन नही किया आगे लिखने का

Tuesday, June 02, 2009

घात !

अश्क के बहाव थाम, होंठ पर उसी का नाम

चेतना की ओट में, स्पर्श भूल गए राम

कई बहाव आ गए, कई मंज़िलें जलीं

कोई कुछ न कर सका, हार हाथ फिर लगी

कोटि कोटि तालियों के बीच अकेले निदान

भीड़ में हो ढूंढते परिचित पलकों का झुकाव

आज वही नीर है, शब्दों की जागीर है

तरकश से निकलते हैं वही पुराने से बाण

आओ हाथ थाम लें, कटु यादों को त्याग दें

नव गगन की लालिमा में कुछ नया अलाप दें

अर्ध विराम लगा लगा के, तुम बहुत हो थक गए

नई लीक रखने के वादे कहाँ गए

आओ जमुनी तले कुछ पलों की याद में

भाव विभोर हो जीवन की फरियाद में

सुमन अर्पित करें इन चंद लम्हात को

आओ पुनः जी लें उस छोटे से घात को