Saturday, October 17, 2009
Tam ko Naman
Haath me le le kali hala
Aankhon mei hon gar angaare
Sheesh jhukakar ga le aalha
Vishv tera gar simat raha ho
Jap le tu nav tam ki mala
Ye kshanbhangur deewali hai
Jal ja tu ban aahutishala
Harsh mein vismit daud raha hai
Rok lo usko, tod do vada
Yeh teri nishchit majboori
Tu hi saki.... tu hi hala
Monday, October 05, 2009
Thursday, September 03, 2009
Full Circle
Saturday, June 27, 2009
I don't know - call it Blogspot's gift !
लबों को सी के, आंखों को झुकाए हुए
इस दश्त में चल रहे हैं ख़ुद से पराये हुए
कभी खुदा कभी अपनों की कभी ख़ुद की याद आती है
यह कैसी दौड़ है कि हम ख़ुद से है शरमाये हुए
ज़ुबां संभाल ओ काफ़िर कि यह रास्ते ठीक नही
खुदा के नाम पर इंसान मिटाए जाते हैं
तेरी आवारगी के आलम कुछ यूँ हैं
मील के पथ्थरों पर तेरे नाम पाए जाते हैं,
मुनासिब हो अगर मेरा खप जाना, दुआ कर कि यह आखिरी हरक़त हो
इस हश्र पर मुमकिन है कि कुछ कसीदे आ जाए, कुछ शरमाते, कुछ सकुचाये हुए
बुलंद रहे यह मौसिकी और इसके खयालों की ताज़गी, कलम को इंतज़ार रहेगा
शहीद हो चुके हैं कितने ख़यालात, कुछ निब के नीचे दबते, kuch .....hell ! Typing in hindi sucks big time, this has to be one of the most user un-friendly applications ever, they could have asked us to get a hindi keyboard and practice shusha or mangal fonts for that matter !
But I shall try again...another day another time, when patience stands by me and flow of thoughts is not hampered by gtalk going tak tak tak or blogger simply refusing to co-operate :-(
Thursday, June 04, 2009
आओ हिसाब करें
ज़रा हिसाब देते जाइये, ज़िन्दगी का बही खाता है
ज़रा शर्म दिखाइए , ऊपर भी एक विधाता है
किसी ने खूब कहा उम्र मरहम देती है
चोट कुरेदते जाइये गर इसी में मज़ा आता है
फतह की आग में झुलस गए होंगे
हमारी आंखों के खारे पानी को मौका दीजिये
सुकून में न सही, मुगालतों की मैय्यत ही सही
यह बन्दा कभी न कभी तो काम आता है
चोट कुरेदते जाइये गर इसी में मज़ा आता है
मन नही किया आगे लिखने का
Tuesday, June 02, 2009
घात !
अश्क के बहाव थाम, होंठ पर उसी का नाम
चेतना की ओट में, स्पर्श भूल गए राम
कई बहाव आ गए, कई मंज़िलें जलीं
कोई कुछ न कर सका, हार हाथ फिर लगी
कोटि कोटि तालियों के बीच अकेले निदान
भीड़ में हो ढूंढते परिचित पलकों का झुकाव
आज वही नीर है, शब्दों की जागीर है
तरकश से निकलते हैं वही पुराने से बाण
आओ हाथ थाम लें, कटु यादों को त्याग दें
नव गगन की लालिमा में कुछ नया अलाप दें
अर्ध विराम लगा लगा के, तुम बहुत हो थक गए
नई लीक रखने के वादे कहाँ गए
आओ जमुनी तले कुछ पलों की याद में
भाव विभोर हो जीवन की फरियाद में
सुमन अर्पित करें इन चंद लम्हात को
आओ पुनः जी लें उस छोटे से घात को
Saturday, May 23, 2009
When .......
When eyes plan to see what you want to and the finger tips begin to feel abstract nouns
When self cries out in agony of latent mediocrity and lips tremble at the sound of I
When motives haunt your innocence and reality is a painted ship upon a painted ocean
When milieu is defined by horizon and margins creep over to occupy your pages
When sunshine shies away from you and raindrops stop just above your head
When blase sarcasm is confused for wit and words begin to dictate the poem
When lesser known fears assume unknown proportions and fullstops are welcome
Then lets talk and take the long promised walk .... ..... ..... .....
Friday, April 10, 2009
Kuch Din Pehle Kisi Ko Intezar Karte Dekha.....
Thirakte kadmo aur nasheeli saanso ke darmiyan kahi gayi baat
Chaukhat ke paas badalte zamane ki raushni ko andhere ki maat
Aangan mei padi tooti charpayi par os ke boondon ki bisaat
Tumhare dabe hue kadmo ki aahat ki aarzoo mei ghar ke kapat
Gusalkhane mei tapakte pani ka sannate ke hriday par aaghat
Aur kisi bebas ma ki aankhon mei guzarte intezaar ke lamhat
kuch aise hi -
Halqi peeli chadar odh kar karvat leti hai har raat, karvat leti hai har raat
Kitne khushnaseeb hain hum ki na kal ka hosh hai aur kal ki yaad